भारतीय वायु सेना को भविष्य में दुनिया की सबसे ताकतवर ताकतों में शुमार करने के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने एक बहुत बड़ी तैयारी शुरू कर दी है। अब तक हम सिर्फ 5th जनरेशन फाइटर जेट्स की बात कर रहे थे, लेकिन DRDO अब इससे भी एक कदम आगे, यानी '6th जनरेशन' की तकनीक पर काम करने जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, इस नए प्रोजेक्ट में ऐसी तकनीकें विकसित की जाएंगी जो किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसी लगती हैं। इसमें हवा में अपना आकार बदलने वाले पंख (Shape-Shifting Wings), खुद की मरम्मत करने वाली कोटिंग और लाइट की स्पीड से चलने वाला कंट्रोल सिस्टम शामिल है।
इसका मकसद AMCA के बाद आने वाले दशकों में भी भारतीय वायु क्षेत्र को सुरक्षित रखना है।
AMCA से आगे: 2040 का विजन
हालांकि अभी सबका ध्यान भारत के अपने स्टील्थ फाइटर 'AMCA' पर है, जिसके प्रोटोटाइप 2028 तक आने की उम्मीद है, लेकिन वैज्ञानिकों ने 2040 के बाद की चुनौतियों से निपटने की प्लानिंग अभी से शुरू कर दी है।रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी सीमाओं और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भविष्य के खतरों का सामना करने के लिए हमें अपनी तकनीक को 'फ्यूचर-प्रूफ' बनाना होगा।
यह तकनीक अभी शुरुआती दौर में है और इसे पूरी तरह तैयार होने में एक दशक से ज्यादा का समय लग सकता है। लेकिन DRDO का मानना है कि अगर हमें ब्रिटेन और चीन जैसे देशों की बराबरी करनी है, जो पहले से ही ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं, तो हमें अभी से निवेश करना होगा।
हवा में आकार बदलने वाले 'मॉर्फिंग' विंग्स
इस रिसर्च का सबसे रोमांचक हिस्सा है 'विंग मॉर्फिंग'। आसान भाषा में समझें तो यह एक ऐसी तकनीक है जो पक्षियों से प्रेरित है। जैसे एक पक्षी उड़ते समय, गोता लगाते समय या ग्लाइड करते समय अपने पंखों का आकार बदलता है, वैसे ही यह फाइटर जेट भी अपने पंखों को मोड़ सकेगा।इसमें पुराने जमाने के फ्लैप्स और एलेरॉन्स (पंखों के वो हिस्से जो ऊपर-नीचे होते हैं) की जरूरत नहीं होगी। इसके बजाय, पूरा पंख ही मुड़ जाएगा। इसके तीन बड़े फायदे होंगे:
- ईंधन की बचत: हवा के दबाव (Drag) को कम करके यह तकनीक 20% तक फ्यूल बचा सकती है।
- बेहतर स्टील्थ: पंखों में जोड़ या गैप न होने की वजह से दुश्मन का रडार इसे आसानी से नहीं पकड़ पाएगा।
- जबरदस्त फुर्ती: आकार बदलने की क्षमता इसे डॉगफाइट (हवाई लड़ाई) के दौरान बहुत तेजी से मुड़ने और विमानवाहक पोत (Aircraft Carrier) से उड़ान भरने में मदद करेगी।
खुद ठीक होने वाली 'नैनो-स्टेल्थ' कोटिंग
दुश्मन देश अब क्वांटम रडार जैसे आधुनिक सेंसर बना रहे हैं जो सामान्य स्टील्थ विमानों को भी पकड़ सकते हैं। इसका तोड़ निकालने के लिए DRDO 'नैनो-कोटिंग' पर काम कर रहा है। पुराने रडार एब्जॉर्बेंट मटीरियल (RAM) भारी होते हैं और जल्दी खराब हो जाते हैं, लेकिन नई तकनीक में बेहद पतले 'मेटामटेरियल्स' का इस्तेमाल होगा।ये 'स्मार्ट' लेयर्स बिजली की तरंगों (Electric Fields) से कंट्रोल की जा सकेंगी। ये न सिर्फ रडार की तरंगों को सोख लेंगी, बल्कि इंजन की गर्मी (Infrared signature) और शोर को भी दबा देंगी।
सबसे खास बात यह है कि इनमें 'सेल्फ-हीलिंग' यानी खुद को ठीक करने की क्षमता होगी। अगर उड़ान के दौरान विमान की ऊपरी परत पर कोई खरोंच आती है, तो यह कोटिंग अपने आप उसे भर देगी, जिससे विमान की स्टील्थ क्षमता किसी भी मिशन के दौरान कम नहीं होगी।
फ्लाई-बाय-लाइट: भविष्य का नर्वस सिस्टम
तीसरी सबसे बड़ी तकनीक है 'फ्लाई-बाय-लाइट' (FBL) सिस्टम। अभी तक फाइटर जेट्स में तांबे के तारों (Copper wiring) का इस्तेमाल होता है जिसे फ्लाई-बाय-वायर कहते हैं। लेकिन भविष्य के जेट्स में फाइबर-ऑप्टिक केबल्स का इस्तेमाल होगा जो डेटा को लाइट (प्रकाश) के रूप में भेजेंगे।इसके फायदे शानदार हैं:
- सुपरफास्ट स्पीड: लाइट के जरिए डेटा भेजने की स्पीड पुरानी तारों के मुकाबले 100 गुना ज्यादा होगी। यह आज के दौर के AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) वाले पायलट्स के लिए बहुत जरूरी है जिन्हें तुरंत डेटा चाहिए होता है।
- वजन में कमी: तांबे के भारी तारों को हटाने से विमान का वजन करीब 500 किलोग्राम कम हो जाएगा। इसका मतलब है कि विमान ज्यादा हथियार या फ्यूल ले जा सकेगा।
- जैमिग से सुरक्षा: फाइबर ऑप्टिक्स पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस (EMI) का असर नहीं होता। यानी दुश्मन के जैमर्स या डायरेक्ट एनर्जी वेपन्स इस विमान के सिस्टम को ठप्प नहीं कर पाएंगे।
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