भारतीय नौसेना की ताकत को समुद्र की गहराइयों में और बढ़ाने के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी DRDO ने एक बड़ी खुशखबरी दी है।
DRDO ने पुष्टि की है कि उनकी स्वदेशी 'एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन' (AIP) तकनीक अब भविष्य की बड़ी पनडुब्बियों को संचालित करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
इसे विशेष रूप से भारत के महत्वाकांक्षी 'प्रोजेक्ट-76' के लिए डिजाइन किया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, भले ही यह सिस्टम शुरू में छोटी 'कलवारी क्लास' के लिए बनाया गया था, लेकिन अब इसे बड़े जहाजों की जरूरतों के हिसाब से आसानी से बदला जा सकता है।
ब्लू वॉटर नेवी के लिए बढ़ाई गई ताकत
DRDO की प्रमुख लैब, नेवल मैटेरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी (NMRL) ने अपनी 'फॉस्फोरिक एसिड फ्यूल सेल' तकनीक का सफल परीक्षण कर लिया है। यह सिस्टम पनडुब्बी के अंदर ही हाइड्रोजन बनाने में सक्षम है।NMRL के वैज्ञानिकों ने साफ कर दिया है कि यह तकनीक सिर्फ छोटी पनडुब्बियों तक सीमित नहीं है। इसका डिजाइन 'मॉड्यूलर' रखा गया है, जिसका मतलब है कि अगर पनडुब्बी बड़ी है और उसे ज्यादा ऊर्जा चाहिए, तो इसमें कई सारे 'फ्यूल सेल स्टैक' को एक साथ जोड़कर पावर बढ़ाई जा सकती है।
यह भारतीय नौसेना के गहरे समुद्र के मिशनों के लिए बेहद अहम साबित होगा।
प्रोजेक्ट-76: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ी छलांग
'प्रोजेक्ट-76' भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, जिसका अनुमानित बजट लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये है।इसके तहत बनने वाली पनडुब्बियां पुरानी कलवारी क्लास से काफी ज्यादा उन्नत और बड़ी होंगी। इनका वजन पानी के अंदर 3,000 से 4,000 टन तक होने की उम्मीद है, जो मौजूदा पनडुब्बियों से लगभग 40% ज्यादा है।
इस बड़े आकार का फायदा यह होगा कि इसमें 'ब्रह्मोस' जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों को दागने के लिए 'वर्टिकल लॉन्च सिस्टम' (VLS) लगाए जा सकेंगे और चालक दल लंबे समय तक समुद्र में रह सकेगा।
इन भारी-भरकम मशीनों और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम को चलाने के लिए ज्यादा बिजली की जरूरत होगी। इसलिए, नए AIP सिस्टम को इस तरह अपग्रेड किया जा रहा है कि यह 200 किलोवाट से ज्यादा का आउटपुट दे सके, जो कि मौजूदा क्षमता से दोगुना है।
दुश्मन की आंखों से बचने की अद्भुत क्षमता
डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए AIP तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है।आम तौर पर पनडुब्बियों को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर आना पड़ता है, जिससे वे दुश्मन के रडार की पकड़ में आ सकती हैं। लेकिन AIP की मदद से प्रोजेक्ट-76 की पनडुब्बियां 4 से 5 सप्ताह तक बिना सतह पर आए पानी के अंदर रह सकेंगी।
मलक्का स्ट्रेट और अरब सागर जैसे संवेदनशील इलाकों में चुपचाप निगरानी करने के लिए यह क्षमता बहुत जरूरी है।
खूफिया सूत्रों के अनुसार, इस तकनीक का एक मॉड्यूल 2025-26 में आईएनएस कलवारी के रिफिट के दौरान उसमें लगाया जाएगा।
चीन और पाकिस्तान को जवाब, 90% 'मेक इन इंडिया'
हिंद महासागर में सुरक्षा की चुनौतियों को देखते हुए यह कदम बहुत महत्वपूर्ण है। चीन अपनी 'युआन क्लास' AIP पनडुब्बियों की संख्या बढ़ा रहा है और पाकिस्तान को भी जल्द ही 'हंगोर क्लास' पनडुब्बियां मिलने वाली हैं। ऐसे में भारत का प्रोजेक्ट-76 इन खतरों का सामना करने के लिए मुख्य हथियार बनेगा।सबसे खास बात यह है कि DRDO इस प्रोजेक्ट में 'L&T' और 'टाटा' जैसी भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
लक्ष्य यह है कि जब ये पनडुब्बियां सेना में शामिल हों, तो इनका 90% हिस्सा भारत में ही बना हो। इससे न सिर्फ भविष्य में मरम्मत और रखरखाव का खर्च कम होगा, बल्कि विदेशी कंपनियों पर भारत की निर्भरता भी लगभग खत्म हो जाएगी।
- अन्य भाषा में पढ़ें
- अंग्रेजी