भारतीय वायु सेना ने अपने भविष्य के जंगी बेड़े को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है। वायु सेना ने माना है कि वह 'फिफ्थ जेनरेशन' यानी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की तलाश में है।
इसका मकसद भारत के अपने फाइटर जेट प्रोग्राम के पूरा होने से पहले बीच के समय में आने वाली कमी को पूरा करना है। यह अहम जानकारी वायु सेना के डिप्टी चीफ एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने हाल ही में आयोजित ANI नेशनल सिक्योरिटी समिट के दौरान दी।
क्यों पड़ी विदेशी विमानों की जरूरत?
समिट के दौरान एयर मार्शल दीक्षित ने वायु सेना के आधुनिकीकरण पर बहुत ही साफगोई से बात की।उन्होंने स्वीकार किया कि भारत का अपना स्वदेशी AMCA प्रोग्राम हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है, लेकिन इसे पूरी तरह तैयार होकर सेना में शामिल होने में अभी लंबा वक्त लगेगा। ऐसे में वायु सेना इस बात का इंतजार नहीं कर सकती।
तकनीकी तौर पर दुनिया से पिछड़ने से बचने के लिए वायु सेना 'इंटरिम' यानी बीच के कुछ सालों के लिए 5th जेनरेशन फाइटर जेट्स हासिल करने के विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रही है।
गैप को भरने की तैयारी
एयर मार्शल दीक्षित ने कहा, "हम अभी मूल्यांकन कर रहे हैं कि AMCA के पूरी तरह ऑपरेशनल होने तक 5th जेनरेशन क्षमताओं की कमी को कैसे भरा जाए।"उन्होंने जोर देकर कहा कि अभी उनका पूरा फोकस यह तय करने पर है कि हमें विमान में तकनीकी तौर पर क्या-क्या चाहिए।
उन्होंने बताया कि वायु सेना ने अपनी 'रिक्वायरमेंट्स' की लिस्ट तैयार कर ली है, हालांकि अभी हम इस स्टेज पर नहीं हैं कि यह बता सकें कि किन विदेशी विमानों या प्लेटफॉर्म्स पर विचार किया जा रहा है।
रणनीतिक चुनौतियां और चीन-पाकिस्तान का फैक्टर
यह फैसला वायु सेना के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत जरूरी है।ओपन सोर्स जानकारी के मुताबिक, भारत का अपना स्टेल्थ फाइटर प्रोजेक्ट 'AMCA' अभी डेवलपमेंट के दौर में है और इसके 2035 के आसपास पूरी तरह से सेना में शामिल होने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि हमारे पास करीब एक दशक का 'वल्नरेबिलिटी विंडो' यानी खाली समय है।
वायु सेना की लीडरशिप को अच्छे से पता है कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश तेजी से अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं। चीन के पास पहले से J-20 स्टेल्थ फाइटर है और वे नेटवर्क सेंट्रिक वारफेयर में आगे बढ़ रहे हैं, इसलिए भारत को अपनी ताकत बनाए रखनी होगी।
रूस का Su-57 या अमेरिका का F-35?
एयर मार्शल दीक्षित के बयान ने डिफेंस गलियारों में चर्चा तेज कर दी है कि भारत किस विदेशी विमान की तरफ जा सकता है। डिफेंस एनालिस्ट काफी समय से यह अनुमान लगा रहे थे कि भारत इस खाली जगह को भरने के लिए किसी स्थापित 5th जेनरेशन प्लेटफॉर्म को चुन सकता है।ग्लोबल मार्केट में रूस का 'सुखोई-57 फेलॉन' और अमेरिका का 'F-35 लाइटनिंग-2' सबसे बड़े दावेदार माने जाते हैं। इसके अलावा यूरोप के भविष्य के 6th जेनरेशन फाइटर प्रोग्राम के साथ सहयोग की संभावनाएं भी हैं।
हालांकि, वायु सेना ने अभी किसी भी विमान पर अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन यह साफ है कि इंटरिम स्टेल्थ फाइटर खरीदना अब सिर्फ अटकलें नहीं, बल्कि वायु सेना की प्लानिंग का एक एक्टिव हिस्सा है।
मौजूदा फ्लीट का भी हो रहा है कायापलट
नए विमानों की खोज के साथ-साथ वायु सेना अपने मौजूदा बेड़े को भी मजबूत कर रही है।स्वदेशी 'तेजस मार्क-1A' और भविष्य के 'तेजस मार्क-2' को शामिल करने का काम पहले से ही तय है, जो सोवियत जमाने के पुराने विमानों की जगह लेंगे।
इसके अलावा, सुखोई-30MKI, मिराज-2000 और मिग-29 स्क्वाड्रन को भी बड़े पैमाने पर अपग्रेड किया जा रहा है ताकि वे आधुनिक युद्ध के लिए तैयार रहें।
लेकिन, 5th जेनरेशन प्लेटफॉर्म की जरूरत इसलिए सबसे अलग और जरूरी है क्योंकि आज के युद्ध के तरीके बदल चुके हैं। इसमें 'लो ऑब्जर्बिलिटी' (स्टेल्थ), सेंसर फ्यूजन और नेटवर्क सेंट्रिक वारफेयर सबसे अहम हैं।
ये ऐसी क्षमताएं हैं जो पुराने जेनरेशन के विमान, चाहे वे कितने भी अपग्रेड क्यों न हों, पूरी तरह से प्रदान नहीं कर सकते।
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