भारतीय एविएशन सेक्टर के लिए एक बहुत बड़ी और सकारात्मक खबर सामने आ रही है।
दुनिया भर में टर्बोप्रॉप विमान बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी, ATR ने भारत में अपना मैन्युफैक्चरिंग प्लांट यानी फाइनल असेम्बली लाइन स्थापित करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई है।
यह फ्रेंको-इटालियन कंपनी भारत में तेजी से बढ़ते हवाई यात्रा के बाजार को देखते हुए अपने सबसे लोकप्रिय विमान, एटीआर 72-600 का उत्पादन यहीं स्थानीय स्तर पर करने पर विचार कर रही है।
उड़ान योजना से बढ़ी मांग
इस फैसले के पीछे सबसे बड़ा कारण भारत में छोटी दूरी की उड़ानों की जबरदस्त मांग है।सरकार की रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम, जिसे 'उड़ान' (उड़े देश का आम नागरिक) के नाम से जाना जाता है, ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत उन शहरों और हवाई अड्डों पर फ्लाइट्स शुरू की गई हैं जहां पहले सुविधाएं नहीं थीं।
इन रूट्स पर किफायती और असरदार विमानों की जरूरत है और ATR इस मामले में सबसे आगे है। इंडिगो और एलायंस एयर जैसी बड़ी एयरलाइंस अपने रिजनल नेटवर्क के लिए मुख्य रूप से ATR विमानों का ही इस्तेमाल करती हैं।
'मेक इन इंडिया' की ओर कदम
सूत्रों के मुताबिक, ATR भारत में निर्माण शुरू करने के लिए तैयार है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बिजनेस के लिहाज से यह कितना फायदेमंद साबित होता है।आपको बता दें कि ATR असल में यूरोप की दो दिग्गज कंपनियों—एयरबस और लियोनार्डो—का एक ज्वाइंट वेंचर है। अच्छी बात यह है कि इन दोनों ही कंपनियों की सप्लाई चेन भारत में पहले से ही काफी मजबूत है।
ATR के एशिया पैसिफिक प्रमुख जीन-पियरे क्लर्सिन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में साफ किया कि कंपनी हर विकल्प के लिए खुली है। उन्होंने कहा कि अगर औद्योगिक और व्यापारिक नजरिए से सब कुछ सही बैठता है, तो भारत में विमान बनाना बिल्कुल संभव है।
भारत के लिए सबसे उपयुक्त विमान
ATR 72-600 को भारत के रिजनल नेटवर्क के लिए सबसे बेहतरीन 'वर्कहॉर्स' माना जाता है। यह विमान 78 यात्रियों को ले जाने में सक्षम है। इसमें प्रैट एंड व्हिटनी कनाडा के इंजन लगे हैं, जो भारत जैसे गर्म तापमान वाले और ऊंचाई वाले इलाकों में भी भरोसेमंद प्रदर्शन करते हैं।तकनीकी रूप से देखें तो टर्बोप्रॉप डिजाइन होने के कारण यह रिजनल जेट विमानों के मुकाबले बहुत किफायती है। यह 40% तक कम ईंधन खर्च करता है और कार्बन उत्सर्जन भी कम करता है।
500 किलोमीटर से कम दूरी की उड़ानों के लिए यह सबसे सस्ता विकल्प है। इसकी रेंज लगभग 750 नॉटिकल माइल्स है और यह छोटे रनवे से भी आसानी से उड़ान भर सकता है, जो अक्सर टियर-2 और टियर-3 शहरों में पाए जाते हैं।
HAL से मिल रही चुनौती
हालांकि अभी इस मार्केट में ATR का दबदबा है, लेकिन मुकाबला धीरे-धीरे बढ़ रहा है।अक्टूबर 2025 में, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने रूस की कंपनी यूएसी के साथ सुखोई सुपरजेट 100 (SJ-100) को भारत में बनाने के लिए एक बड़ा समझौता किया है। HAL के पास इस 75-100 सीटों वाले रिजनल जेट को बनाने का अधिकार है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही सुखोई जेट ज्यादा तेज है और यात्रियों को ज्यादा आराम देता है, लेकिन यह ATR जैसे टर्बोप्रॉप विमानों की तुलना में ज्यादा ईंधन खपत करता है। इसलिए, उड़ान योजना के तहत सस्ती टिकटों वाली उड़ानों के लिए ATR अभी भी एयरलाइंस की पहली पसंद बना हुआ है।
भविष्य की संभावनाएं
एटीआर का अनुमान है कि 2030 तक भारत उनके लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। आने वाले समय में यहाँ 200 से 300 नए टर्बोप्रॉप विमानों की मांग पैदा होने की संभावना है।अगर ATRभारत में अपनी प्रोडक्शन लाइन शुरू करता है, तो इससे न केवल लॉजिस्टिक्स का खर्चा और आयात शुल्क बचेगा, बल्कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' अभियान को भी बढ़ावा देगा। इससे देश में एयरोस्पेस सेक्टर में नई तकनीक आएगी और हजारों स्किल्ड नौकरियां पैदा होंगी।
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