चीन के कर्ज तले दबा पाकिस्तान: CPEC का कर्ज 30 बिलियन डॉलर पहुँचा, आर्थिक संकट गहराया

चीन के कर्ज तले दबा पाकिस्तान: CPEC का कर्ज 30 बिलियन डॉलर पहुँचा, आर्थिक संकट गहराया


पाकिस्तान के लिए कभी 'गेम चेंजर' माना जाने वाला चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) अब उसके लिए एक बड़े आर्थिक संकट का सबब बन गया है।

किर्गिस्तान के एक प्रमुख अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान पर चीन का कुल कर्ज बढ़कर 30 बिलियन डॉलर (लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये) के करीब पहुंच गया है।

यह पाकिस्तान के कुल बाहरी कर्ज का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, जो देश की कमजोर अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डाल रहा है।

कर्ज का जाल और प्रोजेक्ट्स की सुस्त रफ्तार​

रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन से लिए गए इस कर्ज पर इंट्रेस्ट रेट काफी ज्यादा हैं और इसे विदेशी करेंसी में चुकाने की शर्त ने पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

हालात यह हैं कि जिस महत्वकांक्षी योजना के सपने दिखाए गए थे, वे जमीन पर उतरते नहीं दिख रहे। CPEC के तहत कुल 90 प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई गई थी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक सिर्फ 38 प्रोजेक्ट्स ही पूरे हो पाए हैं।

ग्वादर पोर्ट और वहां का एयरपोर्ट, जिसे चीन अपनी रणनीतिक जीत मानता है, वह भी अभी बहुत सीमित क्षमता के साथ ही काम कर रहा है। यह साफ दर्शाता है कि कागजी प्लान और हकीकत में कितना बड़ा अंतर है।

CPEC 2.0: मजबूरी में बदला गया प्लान​

साल 2015 में जब CPEC लॉन्च हुआ था, तो इसे 46 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ शुरू किया गया था। इसका मकसद पाकिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह बदलना था। लेकिन पिछले 10 सालों में यह 'मेगा-प्रोजेक्ट' अब एक सिकुड़ी हुई योजना बनकर रह गया है।

2025 तक आते-आते इसे 'CPEC 2.0' का नाम देकर रिब्रैंड किया गया है। अब पाकिस्तान और चीन बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की जगह खेती, माइनिंग और इंडस्ट्रियल ज़ोन पर फोकस कर रहे हैं। यह बदलाव इस बात का सबूत है कि पुराने मॉडल में गवर्नेंस की कमी और पैसों की तंगी ने प्रोजेक्ट की रफ्तार रोक दी है।

स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन्स और सुरक्षा चुनौतियां​

पाकिस्तान में 9 स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन्स (SEZs) बनाने का वादा किया गया था, लेकिन फिलहाल सिर्फ 3 में ही थोड़ा-बहुत काम होता दिख रहा है। बाकी प्रोजेक्ट्स अभी भी चर्चा या प्लानिंग के स्टेज पर ही अटके हुए हैं।

इसके अलावा, सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। बलूचिस्तान में, जहां ग्वादर स्थित है, स्थानीय लोग इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं। वहां के लोगों का मानना है कि उनके संसाधनों का इस्तेमाल तो हो रहा है, लेकिन उन्हें उसका फायदा नहीं मिल रहा। आए दिन चीनी इंजीनियरों और प्रोजेक्ट्स पर होने वाले हमलों ने निवेशकों के मन में डर पैदा कर दिया है।

पर्यावरण और कूटनीति पर असर​

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को भी भारी नुकसान हो रहा है। संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल और प्रदूषण भविष्य के लिए खतरा बन रहे हैं, जिसके लिए सख्त मॉनिटरिंग की जरूरत है।

कूटनीतिक नजरिए से देखें तो पाकिस्तान की चीन पर हद से ज्यादा निर्भरता उसके लिए जोखिम भरी है। दुनिया में बदलते समीकरणों के बीच, सिर्फ एक ही पार्टनर पर पूरी तरह निर्भर हो जाना पाकिस्तान की संप्रभुता और आर्थिक आजादी के लिए खतरा बन गया है।

CPEC का भविष्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि पाकिस्तान इस कर्ज के बोझ और धीमी गति से चल रहे काम को कैसे संभालता है।
 
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