भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के चेयरमैन, डॉ. समीर वी. कामत ने एक बहुत बड़ी जानकारी दी है। उन्होंने बताया है कि भारत की बेहद उन्नत लॉन्ग-रेंज एंटी-शिप मिसाइल (LRAShM) के सभी परीक्षण अगले दो से तीन सालों में पूरे हो जाएँगे।
यह एक हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) है, जो भारत की सैन्य ताकत को कई गुना बढ़ा देगा और हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति को अभूतपूर्व मजबूती प्रदान करेगा।
जून 2025 में एक डिफेंस टेक्नोलॉजी कार्यक्रम के दौरान NDTV से बात करते हुए, डॉ. कामत ने बताया कि भारत का हाइपरसोनिक मिसाइल प्रोग्राम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस सफलता के साथ, भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिनके पास ऐसी अत्याधुनिक सैन्य टेक्नोलॉजी है।
इस मिसाइल का सफल परीक्षण 16 नवंबर, 2024 को ओडिशा के डॉ. APJ अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया था।
यह मिसाइल न केवल भारतीय नौसेना की समुद्री मारक क्षमता को बढ़ाएगी, बल्कि तीनों सेनाओं (थल, जल और वायु) के लिए एक मल्टी-रोल प्लेटफॉर्म का काम करेगी।
क्या है LRAShM और क्यों है यह खास?
LRAShM एक हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिसे एक बैलिस्टिक मिसाइल की तेज रफ्तार और एक क्रूज मिसाइल की तरह हवा में रास्ता बदलने की क्षमता को मिलाकर बनाया गया है।यह Mach10 तक की गति (लगभग 12,144 किलोमीटर प्रति घंटा) से उड़ान भर सकती है।
इसे DRDO के हैदराबाद स्थित डॉ. APJ अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स ने अन्य DRDO प्रयोगशालाओं और स्टर्लिंग टेक्नो-सिस्टम्स जैसी भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर विकसित किया है।
इसमें एक बूस्टर रॉकेट के ऊपर डेल्टा-विंग वाला हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) लगा होता है।
अपनी तेज गति और हवा में कलाबाजी खाने की क्षमता के कारण, इसे दुश्मन के किसी भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए रोकना लगभग नामुमकिन है।
यह 1,500 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तक पारंपरिक और न्यूक्लियर दोनों तरह के हथियार ले जा सकती है।
नवंबर 2024 में हुए पहले सफल परीक्षण ने यह साबित कर दिया कि यह मिसाइल हवा में अपना रास्ता बदलकर सटीकता से टारगेट को भेद सकती है।
पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह यह आसमान में एक तय रास्ते पर नहीं चलती, बल्कि वायुमंडल में कम ऊंचाई पर ग्लाइड करती है। इस वजह से यह दुश्मन के रडार की पकड़ में आसानी से नहीं आती।
इसे एक विशेष कोल्ड-लॉन्च सिस्टम से दागा जाता है, जो ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर (TELs) जैसी मोबाइल गाड़ियों से भी तेजी से लॉन्च करने की सुविधा देता है।
भविष्य में इसे नौसेना के जहाजों से भी लॉन्च किया जा सकेगा।
हिंद महासागर में बदलेगा शक्ति का संतुलन
इस मिसाइल की सबसे बड़ी भूमिका हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की सुरक्षा को मजबूत करना है।यह चीन के बढ़ते नौसैनिक बेड़े, जिसमें उसके तीन एयरक्राफ्ट कैरियर 'लिओनिंग', 'शैनडोंग' और 'फ़ुज़ियान' शामिल हैं, के साथ-साथ पाकिस्तान की चीनी-निर्मित पनडुब्बियों से उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिए बनाई गई है।
यह मिसाइल सिर्फ 7 से 8 मिनट में 1,500 किलोमीटर दूर मौजूद दुश्मन के जंगी जहाजों को तबाह कर सकती है, जो भारतीय नौसेना को एक निर्णायक बढ़त देती है।
इसमें लगा आरएफ सीकर (RF Seeker) यह सुनिश्चित करता है कि यह तेज गति से चल रहे समुद्री लक्ष्यों पर भी सटीक निशाना लगा सके।
यह क्षमता इसे नौसेना के पास पहले से मौजूद सुपरसोनिक ब्रह्मोस और सबसोनिक LRLACM मिसाइलों से भी ज्यादा घातक बनाती है।
तीनों सेनाओं के लिए एक शक्तिशाली हथियार
नौसेना के अलावा, LRAShM को एक मल्टी-सर्विस प्लेटफॉर्म के रूप में डिजाइन किया गया है। इसका मतलब है कि इसके लैंड-अटैक वेरिएंट भारतीय थल सेना और वायु सेना को भी दिए जाएँगे, जिन्हें प्रस्तावित इंटीग्रेटेड रॉकेट फोर्स का हिस्सा बनाया जाएगा।इस क्षमता के साथ, यह चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पार या पाकिस्तान में दुश्मन के इलाके के अंदर मौजूद महत्वपूर्ण ठिकानों, जैसे कमांड सेंटर, एयरफील्ड या पुलों को निशाना बना सकती है।
यह मिसाइल चीन के DF-17 और पाकिस्तान की मिसाइल टेक्नोलॉजी का मुंहतोड़ जवाब देने की भारत की रणनीति का एक अहम हिस्सा है।
डॉ. कामत का यह कहना कि ट्रायल दो-तीन साल में पूरे हो जाएँगे, DRDO के आत्मविश्वास को दिखाता है। यह एक बड़ी सफलता है क्योंकि पहले इसकी गति मैक 6-7 मानी जा रही थी, लेकिन नवंबर 2024 के टेस्ट में इसने मैक 10 की रफ्तार हासिल की।
यह 2020 में टेस्ट किए गए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) से एक बड़ी छलांग है, जिसने मैक 6 की गति हासिल की थी। HSTDV ने स्क्रैमजेट प्रोपल्शन और अत्यधिक गर्मी को संभालने जैसी महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी को सफल साबित किया था, जिसने LRAShM का रास्ता तैयार किया।
इस पूरी सफलता में हैदराबाद स्थित DRDO की 400 करोड़ की हाइपरसोनिक विंड टनल (HWT) सुविधा का बड़ा योगदान रहा है, जहाँ Mach 12 तक की गति पर मिसाइल के डिजाइन का परीक्षण किया जा सकता है।
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