यूरोड्रोन की 2300 किलो पेलोड क्षमता से प्रभावित हुआ DRDO का दल, म्यूनिख में मिली खास जानकारी

यूरोड्रोन की 2300 किलो पेलोड क्षमता से प्रभावित हुआ DRDO का दल, म्यूनिख में मिली खास जानकारी


भारत की मानवरहित हवाई वाहन (UAV) क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एक दल ने हाल ही में जर्मनी के म्यूनिख शहर के पास एक फैक्ट्री का दौरा किया।

इस दौरे का मकसद यूरोप के सबसे उन्नत ड्रोन, 'यूरोड्रोन', की टेक्नोलॉजी और क्षमताओं को समझना था।

भारत इस महत्वाकांक्षी ड्रोन प्रोग्राम में एक 'ऑब्जर्वर' यानी पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल है और यह दौरा उसी सिलसिले में किया गया।

क्या है यूरोड्रोन और क्यों है यह इतना खास?​

यूरोड्रोन एक 'मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस' (MALE) श्रेणी का रिमोट से चलने वाला एयरक्राफ्ट सिस्टम (RPAS) है।

इसे जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्पेन मिलकर बना रहे हैं, जिसमें एयरबस डिफेंस एंड स्पेस, डसॉल्ट एविएशन और लियोनार्डो जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं।

यह कोई साधारण ड्रोन नहीं है; इसकी कुछ खासियतें इसे दुनिया के सबसे उन्नत ड्रोनों में से एक बनाती हैं:
  • जबरदस्त पेलोड क्षमता: यह ड्रोन 2,300 किलोग्राम तक के हथियार और सेंसर उपकरण लेकर उड़ सकता है।
  • लगातार उड़ान: यह एक बार में 40 घंटे तक हवा में रह सकता है, जिससे लंबी निगरानी संभव है।
  • शक्तिशाली इंजन: इसमें दो 'जनरल इलेक्ट्रिक कैटलिस्ट' टर्बोप्रॉप इंजन लगे हैं, जो इसे अधिक ऊंचाई और खराब मौसम में भी बेहतर प्रदर्शन करने की ताकत देते हैं।
  • खुला आर्किटेक्चर: इसका 'ओपन-आर्किटेक्चर' डिजाइन भविष्य में नए सेंसर और हथियारों को आसानी से इंटीग्रेट करने की सुविधा देता है।
इसका मुख्य काम इंटेलिजेंस, सर्विलांस, टारगेट एक्विजिशन, एंड रिकॉनिसेंस (ISTAR) मिशनों को अंजाम देना है, यानी जासूसी, निगरानी और दुश्मन के ठिकानों की सटीक जानकारी जुटाना।

यूरोड्रोन की किन बातों से प्रभावित हुए भारतीय विशेषज्ञ?​

सूत्रों के अनुसार, म्यूनिख के पास एयरबस की फैक्ट्री में डीआरडीओ के दल को यूरोड्रोन की तकनीकी बारीकियों और डिजाइन पर एक विस्तृत ब्रीफिंग दी गई।

भारतीय विशेषज्ञ, जिनमें एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADE) के एक्सपर्ट्स भी शामिल थे, इसकी कुछ क्षमताओं से विशेष रूप से प्रभावित हुए:
  1. हर मौसम में ऑपरेशन: यह ड्रोन बर्फीले पहाड़ों से लेकर समुद्री तूफान तक, किसी भी तरह के प्रतिकूल मौसम में काम करने में सक्षम है। यह क्षमता लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) जैसे ऊंचाई वाले और अप्रत्याशित मौसम वाले क्षेत्रों में निगरानी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
  2. उन्नत सेंसर पैकेज: इसमें सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इंफ्रारेड (EO/IR) सिस्टम और सिग्नल्स इंटेलिजेंस (SIGINT) पेलोड जैसे अत्याधुनिक सेंसर लगे हैं, जो दिन-रात और किसी भी मौसम में जमीन पर छोटी से छोटी गतिविधि का पता लगा सकते हैं।
  3. स्टील्थ फीचर्स और सुरक्षा: ड्रोन में कुछ 'स्टील्थ फीचर्स' हैं, जो इसे दुश्मन के रडार से बचने में मदद करते हैं। इसके अलावा, इसका डेटा हैंडलिंग सिस्टम बेहद सुरक्षित है, जिससे जानकारी के लीक होने का खतरा कम होता है।

भारत के लिए इस दौरे और 'ऑब्जर्वर स्टेटस' का क्या मतलब है?​

भारत की तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) को कुल 97 MALE श्रेणी के ड्रोनों की जरूरत है।

भारत को 21 जनवरी, 2025 को 'ऑर्गनाइजेशन फॉर जॉइंट आर्मामेंट कोऑपरेशन' (OCCAR) द्वारा इस कार्यक्रम में जापान के साथ 'ऑब्जर्वर स्टेटस' दिया गया था। इस दर्जे के फायदे हैं:
  • तकनीकी ज्ञान: भारत को इस प्रोजेक्ट की तकनीकी प्रगति, डिजाइन और ऑपरेशनल डेटा तक पहुंच मिलती है। इससे DRDO को यह सीखने का मौका मिलेगा कि ऐसे उन्नत सिस्टम कैसे बनाए जाते हैं।
  • स्वदेशी प्रोग्राम को मदद: यूरोड्रोन से मिली जानकारी का इस्तेमाल भारत के अपने स्वदेशी ड्रोन कार्यक्रमों, जैसे 'Tapas-BH-201' (रुस्तम-II) और 'Archer-NG' को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • भविष्य की खरीद में आसानी: यदि भविष्य में भारत इस ड्रोन को खरीदने का फैसला करता है, तो यह जानकारी सही निर्णय लेने में मदद करेगी।
हालांकि, यूरोड्रोन प्रोग्राम अपनी शुरुआत से ही देरी का सामना कर रहा है और इसकी पहली प्रोटोटाइप उड़ान 2027 के मध्य तक होने की उम्मीद है। बढ़ती लागत भी एक चिंता का विषय है।

इन चुनौतियों के बावजूद, यह दौरा भारत के लिए अपनी रक्षा और निगरानी क्षमताओं को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से तैयार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
 
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